नई दिल्ली। सरकारी आवास में मिले नोटों से भरे स्टोर रूम मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। तीन सदस्यीय जांच समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि जिस स्टोर रूम से भारी मात्रा में नकदी मिली, वह जस्टिस यशवंत वर्मा और उनके परिजनों के नियंत्रण में था। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नंद की अध्यक्षता वाली जांच समिति ने कहा “यह मामला गंभीर है, जनता का न्यायपालिका पर से विश्वास डगमगा सकता है।
जांच में चौंकाने वाले खुलासे
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति, जिसमें जस्टिस शील नागू, जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। उन्होंने 55गवाहों से पूछताछ की और जस्टिस वर्मा का बयान दर्ज किया। समिति ने पाया कि 30तुगलक क्रिसेंट स्थित स्टोररूम, जहां जली हुई नकदी मिली है, जो की आधिकारिक रूप से जस्टिस वर्मा के कब्जे में था। साथ ही, बता दें कि उस रूम में केवल वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों को ही आने-जाने की इजाजत थी। इन फैक्ट्स के आधार पर समिति ने महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की।
मार्च में शुरू हुआ विवाद
इस साल मार्च में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने के बाद स्टोररूम से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी बरामद हुई थी। इस घटना के बाद उन पर गंभीर आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। हालांकि, उन्हें कोई न्यायिक जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई। समिति ने 4मई को अपनी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश को सौंपी, लेकिन इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।
जस्टिस वर्मा का इनकार
जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार करते हुए कहा कि नकदी से उनका या उनके परिवार का कोई लेना-देना नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को दिए जवाब में उन्होंने दावा किया कि उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। जांच समिति की सिफारिश के बाद अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट और संसद पर टिकी हैं, जहां महाभियोग प्रस्ताव पर फैसला लिया जाएगा। यह मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक गंभीर मुद्दा बन चुका है।
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